क्या डीपसीक, अमेरिका को चीन की चुनौती भी है?
डीपसीक के आगे-पीछे की कहानी बताती है कि यह न केवल एआई क्षेत्र को बदल सकती है बल्कि पूरी दुनिया का हिसाब-किताब भी उलट-पुलट कर सकती है
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अचानक सामने आकर बड़े-बड़े दिग्गजों को चुनौती देने वाली चीनी एआई कंपनी, डीपसीक की चर्चा दुनिया भर में है. डीपसीक का लेटेस्ट मॉडल न केवल सबसे बड़े अमेरिकी एआई मॉडलों के बराबर प्रदर्शन करता है बल्कि कहीं-कहीं उनसे आगे भी निकल जाता है. कमाल की बात यह है कि ऐसा उसने बहुत कम लागत और तकनीकी संसाधनों के साथ किया है. इसके चलते कुछ बड़े सवाल उठने लगे हैं: क्या डीपसीक एआई के वैश्विक परिदृश्य में बदलाव का संकेत है? और, क्या इसे एआई के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी चीन के अग्रणी बनकर उभरने की संभावना के तौर पर देखा जा सकता है?
डीपसीक बहुत क्रांतिकारी तरीक़े से तकनीक की दुनिया में दाखिल हुआ है. ओपनएआई और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियों ने अपने लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (एलएलएम - विभिन्न भाषाओं में इंसान की तरह संवाद कर सकने वाली तकनीक) विकसित करने में हजारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं. वहीं डीपसीक ने उनसे बहुत कम निवेश में न केवल चैटजीपीटी और जैमिनी जैसा मॉडल बनाया बल्कि उनसे कहीं बेहतर नतीजे हासिल कर लिए. इसके लेटेस्ट मॉडल की लागत 50 करोड़ रुपयों से भी कम बताई जा रही है. और इसे महज़ दो महीनों में तैयार किया गया है. धन और समय का यह आंकड़ा उसके अमेरिकी प्रतिस्पर्धियों द्वारा लगाए गए संसाधनों के सामने कुछ भी नहीं है.
इसके अलावा, डीपसीक ने अपने मॉडलों को ओपन-सोर्स रखा है. इसका मतलब यह है कि दुनिया भर के डेवलपर्स और रिसर्चर्स के लिए ये मुफ़्त में उपलब्ध हैं. यह रणनीति न केवल पारदर्शिता और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देती है बल्कि इससे डीपसीक को अपने मॉडलों को बेहतर बनाने में भी काफी मदद मिलेगी. इसके विपरीत, ज़्यादातर अमेरिकी कंपनियों ने क्लोज़्ड-सोर्स मॉडल का विकल्प चुना है. जानकार मानते हैं कि यह भविष्य में नये और रचनात्मक प्रयोगों के रास्ते की बाधा बन सकता है.
डीपसीक की सफलता ने सिलिकॉन वैली में अचानक हलचल पैदा कर दी है. इसके चलते एआई डेवलपमेंट से जुड़ी स्थापित मान्यतायें टूटती दिख रही हैं. सीमित संसाधनों के साथ कमाल का प्रदर्शन करने वाली डीपसीक इस धारणा को चुनौती देती है कि भारी निवेश के बिना एआई के क्षेत्र में सफलता पाना संभव नहीं है. इससे प्रमुख अमेरिकी एआई कंपनियों, ख़ासकर ओपन-एआई, की उस कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो गए हैं, जो अरबों डॉलर की फ़ंडिंग के बाद भी उन्हें लाभ नहीं कमाने दे रही है.
डीपसीक का उभार एक ऐसे समय पर हुआ है जब एआई डेवलपमेंट की सस्टेनिबिलिटी को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. बड़े पैमाने पर ऊर्जा की खपत और इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के चलते इस पर कई सवाल उठने लगे हैं. साधारण और सस्ते हार्डवेयर के साथ, वैसे ही नतीजे हासिल करके डीपसीक ने दुनिया को यह बताया है कि एआई डेवलपमेंट के स्थाई और किफ़ायती तरीक़े भी हो सकते हैं.
डीपसीक ने दुनिया भर में एआई डेवलपमेंट को लेकर मची होड़ को एक नई दिशा देने का काम किया है. पहले ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना था कि एआईड डेवलपमेंट की दौड़ में चीन, अमेरिका के आसपास भी नहीं है. डीपसीक की उपलब्धियों ने उनके इस आकलन को ग़लत ठहरा दिया है. सेमीकंडक्टर निर्यात पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद इस कंपनी ने जो कमाल किया है वह एआई के क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति बनने के चीन के मज़बूत इरादों की झलक दे देता है.
डीपसीक के मॉडल को ओपन-सोर्स रखे जाने के भी भू-राजनीतिक अर्थ निकाले जा सकते हैं. अपनी तकनीक को मुफ़्त में उपलब्ध करवाकर डीपसीक अपने आप को ग्लोबल एआई इकोसिस्टम के आधार के तौर पर स्थापित कर सकता है. इससे भविष्य में वह दुनिया भर में एआई के विकास और इस्तेमाल को प्रभावित करने की स्थिति में भी आ सकता है.
डीपसीक के अचानक उभार ने, इस बात पर सोच-विचार करने पर मजबूर कर दिया है कि भविष्य में एआई और इसकी सफलता को तय करने वाले कारक कौन से होंगे. पूंजी निवेश और अत्याधुनिक हार्डवेयर तक पहुंच जहां आगे भी महत्वपूर्ण होगी, वहीं एक अलग और बेहतर तरीके से काम करना और मिलकर काम करने वाला दृष्टिकोण भी उतने ही महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.
डीपसीक की सफलता, एआई डेवलपमेंट में प्रतिभा और मानव संसाधन के महत्व को भी सामने लाती है. कंपनी के मुताबिक़, उसने इंजीनियरों और शोधकर्ताओं की एक बढ़िया टीम बनाई है. इस टीम की ख़ासियत यह है कि इसके कई सदस्यों ने हाल ही में अपनी पढ़ाई पूरी की है. इससे पता चलता है कि चीन तेज़ी से एक ऐसा टैलेंट पूल तैयार कर रहा है जो आने वाले समय में उसकी सफलता का मुख्य कारण बन सकता है.
डीपसीक का उभार चीन की तकनीकी ताकत के साथ-साथ, इनोवेशन सेक्टर में अमेरिका को चुनौती देने के उसके इरादे को भी दिखाता है. इसकी सफलता ने एआई डेवलपमेंट के भविष्य, इसे लेकर चल रही वैश्विक होड़ और 21वीं सदी का नेता होने से जुड़े कुछ ज़रूरी सवाल खड़े कर दिए हैं.
यह तो भविष्य ही बताएगा कि डीपसीक का उभार चीन के वैश्विक इरादों के पूरा होने का संकेत है या नहीं. लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उसकी शुरुआती सफलता ने एआई से जुड़े माहौल को बदलकर रख दिया है. इसने दुनिया को एआई के बारे में नई तरह से विचार करने पर मजबूर कर दिया है. आने वाले समय में अमेरिका और चीन के बीच की प्रतिस्पर्धा के केंद्र में एआई भी हो सकती है. और इसका दोनों देशों और दुनिया के भविष्य पर गहरा असर देखने को मिल सकता है.
इसका एक सकारात्मक असर भी हो सकता है. जब इस तरह की ताकतें एक-दूसरे से मुकाबला करती हैं, तो हमें बेहतर तकनीक और उसके सस्ते में मिलने की संभावना बढ़ जाती है.