डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति: व्लादीमीर से दोस्ती, वोलोदिमिर से बैर क्यों?
रूस और यूक्रेन के मामले में डोनाल्ड ट्रंप का व्यवहार जिन वजहों से ऐसा है उनमें से दो वजहें सबसे ज्यादा अहम् हैं

रूस और यूक्रेन के मामले में डोनाल्ड ट्रंप के अजीबोगरीब रवैये के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इनमें से दो सबसे अहम हैं: व्लादीमीर पुतिन के प्रति उनका झुकाव और वोलोदिमिर ज़ेलेन्स्की से उनकी नाराज़गी. जब ये निजी कारण बाकी वजहों से मिल जाते हैं तो वे उस जगह से बहुत दूर जाते दिखते हैं जो बीते कई दशकों से अमेरिकी विदेश नीति का केंद्र रही है. उदाहरण के लिए पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन रूस से युद्ध के मामले में पूरी तरह से यूक्रेन के साथ थे. लेकिन ट्रंप न केवल यूक्रेन को उसके हाल पर छोड़ने को आतुर दिखते हैं बल्कि पुतिन या रूस की हल्की-फुल्की आलोचना करने तक से बचते हैं.
अमेरिकी-रूसी भाई-भाई
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए थे. इस दौरान एक भारतीय पत्रकार ने डोनाल्ड ट्रंप से सवाल किया—‘आप अमेरिका और भारत के संबंधों को चीन का मुकाबला करने के संदर्भ में किस तरह से देखते हैं? और यूक्रेन-रूस के बीच शांति स्थापना के लिए भारत की मध्यस्थता पर आपकी क्या राय है?
इस सवाल के जवाब पर शायद किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जिसने ऐसा किया होगा चौंका ज़रूर होगा. “मुझे लगता है कि हमारे चीन के साथ बहुत अच्छे संबंध होंगे… मेरी राष्ट्रपति शी के साथ बहुत ही अच्छी बनती थी… हम नेता होने के नाते एक-दूसरे के काफी करीब थे”, डोनाल्ड ट्रंप का जवाब था, “मुझे लगता है कि चीन दुनिया का एक बहुत महत्वपूर्ण देश है. मुझे लगता है वे (चीन) यूक्रेन और रूस के बीच इस युद्ध को समाप्त करने में हमारी मदद कर सकते हैं.”
इस सवाल का जवाब देने के बजाय कि भारत और अमेरिका चीन का मुकाबला कैसे कर सकते हैं, ट्रंप, चीन और शी जिनपिंग के साथ अपने संबंधों का बखान कर रहे थे. और जब उनसे रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करने में भारत की भूमिका के बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह बताया कि कैसे भारत के बजाय चीन ऐसा करने में मदद कर सकता है.
जो लोग डोनाल्ड ट्रंप से परिचित हैं, उनके लिए यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं रही होगी. उनकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू तानाशाही प्रवृत्ति वाले नेताओं के प्रति उनका आकर्षण रहा है. वे अक्सर व्लादीमीर पुतिन को मज़बूत और समझदार नेता बताकर उनकी तारीफ़ करते रहे हैं. 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद भी उन्होंने पुतिन की रणनीति को ‘जीनियस’ बताया था. हालांकि बाद में उन्होंने इस पर सफ़ाई देते हुए यह कहा कि वे रूस-यूक्रेन युद्ध का समर्थन नहीं करते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप हमेशा ऐसे शासकों की प्रशंसा करते रहे हैं जो अपने देशों को अपने तरीके से चलाने के लिए जाने जाते हैं. चाहे शी जिनपिंग हों, किम जोंग-उन, रेसेप तैय्यप एर्दोआन या व्लादिमीर पुतिन, ट्रंप तानाशाह शासकों को शक्ति और निर्णायकता का प्रतीक मानते हैं. लोकतांत्रिक नेताओं को राजनीतिक विरोध और विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं को ध्यान में रखते हुए काम करना होता है, वहीं पुतिन जैसे नेता ऐसी बातों की चिंता किए बिना बड़े फैसले ले सकते हैं.
शीत युद्ध के समय से हाल तक अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी का नजरिया रूस के प्रति विरोध का रहा था. लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों और ‘वैचारिक’ झुकाव के चलते अपनी पार्टी को उसके सर के बल खड़ा कर दिया. उन्होंने 2016 के चुनाव में रूसी हस्तक्षेप के प्रमाणों को कभी तवज्जो नहीं दी और इस मामले में अक्सर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के बजाय पुतिन का पक्ष लिया. इसकी सबसे स्पष्ट झलक 2018 के हेलसिंकी शिखर सम्मेलन में देखी जा सकती थी. यहां ट्रंप ने पुतिन के साथ खड़े होकर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की जांचों को खारिज करते हुए कहा, “राष्ट्रपति पुतिन कहते हैं कि रूस ने ऐसा नहीं किया. मुझे कोई कारण नहीं दिखता कि ऐसा किया गया होगा.”
डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक शैली व्लादीमीर पुतिन और उनके हितों से काफी मेल खाती है. ट्रंप लंबे समय से अमेरिका की विदेश नीति तय करने वाले उस तंत्र की आलोचना करते रहे हैं, जो रूस को खतरा मानता है. वे नाटो को किसी और ज़माने और दुनिया का संगठन बताकर उसे खारिज करते रहते हैं और उससे बाहर निकल जाने की धमकी भी देते हैं. यह पश्चिमी देशों की एकता कमजोर करने के रूस के लक्ष्य से मेल खाता है. ट्रंप अक्सर पश्चिमी अभिजात्य वर्ग, मीडिया और तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर हमले करते रहते हैं जो किसी को भी पश्चिमी और लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के प्रति पुतिन की घृणा की याद दिला सकता है. ट्रंप और हंगरी के विक्टर ओर्बान जैसे उनके दक्षिणपंथी मित्र इमिग्रेशन, एलजीबीटीक्यू+ राइट्स और तमाम अन्य ऐसी नीतियों के मामले में भी पुतिन के कट्टरपंथी विचारों को साझा करते हैं.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन के प्रति ट्रंप का झुकाव केवल विचारधारा या साझा हितों की वजह से ही नहीं है. इसमें पुतिन का उनके प्रति व्यवहार भी बड़ी भूमिका निभाता है. व्लादिमीर पुतिन साइकोलॉजिकल मैनिप्युलेशन में माहिर हैं. वे ट्रंप की आत्ममुग्धता और अहम् जैसी प्रवृत्तियों को बखूबी समझते हैं. कई दूसरे नेता अक्सर ट्रंप के तौर-तरीकों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष विरोध या तिरस्कार करते नज़र आते हैं. लेकिन पुतिन इस मामले में अलग हैं. वे ट्रंप की खूब प्रशंसा करते हैं, उनके अहंकार को पोसते हैं और उनके साथ अपने रिश्ते को दो ‘मजबूत’ नेताओं की साझेदारी के तौर पर पेश करते हैं. शायद यह भी एक वजह है कि डोनाल्ड ट्रंप, पुतिन से इस कदर प्रभावित नज़र आते हैं.
ऐसी अटकलें भी लगती रही हैं कि पुतिन के पास ट्रंप के ऊपर दबाव बना सकने वाली कोई महत्वपूर्ण चीज़ है. ब्रिटेन के पूर्व खुफिया अधिकारी क्रिस्टोफर स्टील ने 2016 में एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट तैयार की थी. इस विवादित रिपोर्ट के मुताबिक रूस के पास ट्रंप को ब्लैकमेल कर सकने वाली कोई आपत्तिजनक सामग्री हो सकती है. यह सच हो या न हो, लेकिन ट्रंप का पुतिन की आलोचना करने से बचना - तब भी जब रूस किसी विपक्षी नेता को ज़हर देने या शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को आक्रामकता से कुचलने जैसी अमानवीय और अलोकतांत्रिक हरकतें कर रहा हो - ऐसी अटकलों को और मजबूती देने का काम करता है.
वोलोदिमिर ज़ेलेन्स्की से घृणा की हद तक नाराज़गी
डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेन्सकी के बीच तनावपूर्ण संबंधों का सबसे बड़ा कारण 2019 का यूक्रेन घोटाला है. इसके चलते ट्रंप पर पहली बार महाभियोग भी चला. इससे वे महाभियोग का सामना करने वाले तीसरे अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए और पहले ऐसे जिसे दो बार इसका सामना करना पड़ा.
ट्रंप ने ज़ेलेन्स्की को फोन करके उन पर अमेरिकी सहायता के एवज़ में जो बाइडेन और उनके बेटे हंटर बाइडेन की जांच करने का दवाब डाला था. हंटर बाइडेन यूक्रेनी ऊर्जा कंपनी बुरीस्मा होल्डिंग्स के बोर्ड में शामिल थे. ट्रंप का दावा था कि जो बाइडेन ने उपराष्ट्रपति रहते हुए इस कंपनी को अवैध फायदा पहुंचाया. लेकिन, ज़ेलेन्स्की ने अमेरिका की घरेलू राजनीति में उलझने से इनकार कर दिया. वे भ्रष्टाचार की जांच कराने की ट्रंप की मांग पर तो राज़ी हो गए, लेकिन इसमें बाइडेन परिवार को फंसाने से साफ इनकार कर दिया. ट्रंप ने इसे अपने साथ विश्वासघात माना.
इस दौरान वोलोदिमिर ज़ेलेन्स्की ने डोनाल्ड ट्रंप की बात मानने के बजाय, अमेरिकी कांग्रेस और उन नेताओं के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान दिया, जो यूक्रेन के प्रति सहानुभूति का भाव रखते थे. इससे ट्रंप और नाराज़ हो गए. उन्होंने ज़ेलेन्सकी को अहसानफरामोशों की श्रेणी में रखकर उन्हें अपनी निजी व राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के आड़े आने वाला व्यक्ति मान लिया.
जो बाइडेन के नेतृत्व में यूक्रेन को अमेरिका का अभूतपूर्व समर्थन मिला. इसमें सैन्य, आर्थिक और मानवीय सहायता के रूप में करीब 100 अरब डॉलर से अधिक की मदद शामिल है. माना जाता है कि ट्रंप की जांच की मांगों को ठुकराने से ज़ेलेन्स्की की साख अमेरिकी नेताओं, ख़ास तौर पर डेमोक्रेट्स, के बीच काफी मजबूत हो गई. इसका फायदा उन्हें बाइडेन प्रशासन से यूक्रेन के लिए चौतरफा समर्थन हासिल करने में मिला. जो बाइडेन जानते थे कि ज़ेलेन्स्की ने ट्रंप के दबाव के बावजूद उनके खिलाफ जांच शुरू नहीं की थी इसलिए उनके प्रशासन में यूक्रेन को अमेरिका का समर्थन मिलना पहले से आसान हो गया था.
यूक्रेन के प्रति अमेरिकी की नीति में यह बदलाव भी शायद ज़ेलेन्स्की के प्रति ट्रंप की नाराज़गी को और बढ़ाने का कारण बन गया. जो बाइडेन की यूक्रेन नीति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के ठीक उलट थी. ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में यूक्रेन को सैन्य सहायता देने में नानुकुर करते थे और उसके महत्व और वजूद पर ही सवाल उठाते रहे. वहीं बाइडेन ने अमेरिका-यूक्रेन के संबंधों को मजबूत किया और इसे अमेरिकी विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बना दिया. ट्रंप यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता को अमेरिकी करदाताओं के पैसे की बर्बादी बताते हैं, वहीं बाइडेन के समय में यूक्रेन अमेरिका का एक अहम् रणनीतिक साझेदार बन गया.
जो लोग ट्रंप को जानते हैं वे मानते हैं कि बाइडेन के प्रति उनके शत्रुवत रवैये और जेलेन्स्की के प्रति बाइडेन के मित्रवत् व्यवहार ने भी शायद ज़ेलेन्स्की के लिए उनकी नापसंदगी को थोड़ा और गहरा करने का काम किया होगा.