चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग 1969 में भारत आए थे. उस दौरान राजस्थान कृषि विभाग के अधिकारी ओंकार सिंह को उनके साथ एक शाम बिताने का मौका मिला था
पुलकित भारद्वाज | 25 अगस्त 2021 | नील आर्मस्ट्रॉन्ग (बाएं) और ओंकार सिंह
‘1969 का अक्टूबर महीना था. गुलाबी सर्दी पड़ने लगी थी, जब नील आर्मस्ट्रॉन्ग जयपुर आए थे. तारीख शायद 27 या 28 में से कोई एक थी.’
यह बताते-बताते राजस्थान कृषि विभाग के पूर्व उपसचिव ओंकार सिंह पिछली आधी सदी को अपने ख़्यालों में दोहराने की कोशिश करते हैं. 98 साल के सिंह की तबीयत अब नासाज रहने लगी है. लेकिन जब उन्हें पता चला कि हम नील आर्मस्ट्रॉन्ग की जयपुर यात्रा के बारे में रिपोर्ट करना चाहते हैं तो बड़ी गर्मजोशी के साथ वे हमसे मुलाकात के लिए तैयार हो गए. ओंकार सिंह ने नील आर्मस्ट्रॉन्ग से हुई मुलाकात की जो यादें साझा की उनका संपादित अंश यहां पेश है:
नील आर्मस्ट्रॉन्ग को चांद से लौटे करीब तीन महीने हो चुके थे. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन अपनी उस अभूतपूर्व उपलब्धि और उससे जुड़े अनुभवों को दुनियाभर के तमाम देशों के साथ साझा करना चाहते थे. इसी सिलसिले में आर्मस्ट्रॉन्ग विश्वभ्रमण पर निकले थे.
उस जमाने में अमेरिका ने पीस कॉर्प्स नाम से कुछ स्वयंसेवकों के समूहों को पिछड़े और विकासशील देशों में खेती, पशुपालन और मछली पालन जैसे क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने के लिए भेजा था. तब राजस्थान में भी ग्यारह पीस कॉर्प स्वयंसेवक अलग-अलग जिलों में रहकर अपना काम संभालते थे. यहां उनके प्रमुख ब्रैडमैन नाम के एक शख्स हुआ करते थे. चूंकि मैं विभाग का सचिव था इसलिए ये सब मेरी देखरेख में काम कर रहे थे. इसी दौरान मेरा और ब्रैडमैन का अच्छा-खासा दोस्ताना हो गया था.
एक दिन ब्रैडमैन का मेरे पास फोन आया. एक अजीब सी हड़बड़ाहट और उत्साह के साथ उन्होंने कहा कि शाम को तैयार रहना, एक खास मेहमान से मिलवाना है. बहुत पूछने पर उन्होंने बताया कि वह मेहमान आर्मस्ट्रॉन्ग हैं. मैंने चौंकते हुए ब्रैडमैन से पूछा, ‘और किसे पता है?’ जवाब मिला, ‘किसी को नहीं. और आप भी मत बताना.’
दरअसल आर्मस्ट्रॉन्ग एक दिन पहले मुंबई आ चुके थे और वहां से उन्हें राजधानी दिल्ली पहुंचना था. लेकिन सुरक्षा कारणों के चलते उन्हें एक दिन के लिए जयपुर में रोका जाना तय हुआ. ये वो समय था जब अंतरिक्ष यात्रा को लेकर सोवियत रूस और अमेरिका में कड़ी प्रतिस्पर्धा थी. चूंकि अमेरिका यह बाजी मार चुका था इसलिए उसे रूस की तरफ से आर्मस्ट्रॉन्ग के लिए ख़तरा महसूस होने लगा था. ऐसे में आर्मस्ट्रॉन्ग के निर्धारित कार्यक्रमों को ऐन मौके पर बदल दिया जाना एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा था.
लेकिन मैं सरकारी ओहदे पर था जिसकी अपनी मर्यादाएं थीं. मैंने ब्रैडमैन से कहा कि आर्मस्ट्रॉन्ग सरकारी मेहमान हैं. इसलिए जब तक मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव को उनसे भेंट का निमंत्रण नहीं मिलता, मेरा आना मुश्किल है. मैं जानता था कि मुख्यमंत्री और सचिव को अगले ही दिन इससे जुड़ी सूचना का मिलना और उसके बाद उनका मुझसे नाराज होना तय था. इसलिए मैंने ज़ोखिम लेना उचित नहीं समझा. ब्रैडमैन होशियार आदमी थे. उन्होंने तुरंत ही उपाय निकाल लिया. उन्होंने कहा कि उन दोनों (मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव) को थोड़ी देर बातचीत के बाद विदा कर देंगे और फिर मैं वहां रुक जाऊं. यह मुझे मंजूर था.
इस छोटे से गोपनीय आयोजन के लिए ब्रैडमैन ने अपने घर को ही चुना. उस समय मुख्य सचिव प्रदेश से बाहर थे इसलिए आ नहीं सके. मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया तय समय पर वहां पहुंच गए. हम सभी के लिए चांद पर जाने वाले व्यक्ति से मिलना खासा रोमांचक था. नील से थोड़ी देर बातचीत के सुखाड़िया वहां से निकल गए. हमें इसी का इंतजार था. आर्मस्ट्रॉन्ग अपने साथ अमेरिकन व्हिस्की ‘बॉरबोन’ लाए थे. वो दीवार पर जो तस्वीर टंगी है उसी समय की है.
ब्रैडमैन की पत्नी ने कत्थक के लिए मशहूर जयपुर घराने से यह नृत्य सीखा था जो उन्होंने आर्मस्ट्रॉन्ग के सामने पेश किया. इस अद्भुत नृत्य को देखकर नील के चेहरे से कुछ वैसी ही खुशी झलक रही थी जैसी कि उनसे मिलकर हमें हो रही थी.
बातचीत का दौर शुरू हुआ. मैं पूछ बैठा कि यह तो बहुत ज़ोखिमभरा मिशन था. आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा, ‘ख़तरा तो था. लेकिन अपने मुल्क की शान के सामने यह कुछ भी नहीं. मैं खुद को भाग्यशाली समझता हुं कि चांद पर कदम रखने वाला पहला इंसान मैं हूं.’ मेरा अगला सवाल था कि वहां क्या खोजा? जवाब में आर्मस्ट्रॉन्ग हंसकर बोले कि मैं तो अपनी समझ से वहां के पत्थर और मिट्टी ले आया था. अब वैज्ञानिक बताएंगे कि मैं असल में क्या लेकर आया था!
आर्मस्ट्रॉन्ग खुद एयरफोर्स से जुड़ने से पहले पीस कॉर्प्स के सदस्य रह चुके थे. इसलिए उन्होंने भारत में चल रहे इस मिशन में खासी दिलचस्पी दिखाई. चूंकि ब्रैडमैन की मुझसे पहले वाले सचिव से नहीं बनती थी और मेरे पद संभालने के बाद उन्हें कई चीजों में सहूलियत मिली थी. इसलिए उन्होंने आर्मस्ट्रॉन्ग के सामने मेरी जमकर तारीफ की. नील ने इस बात के लिए मेरा आभार जताया.
उस समय कुछ पीस कॉर्प स्वयंसेवक जयपुर के नजदीकी दौसा जिले में सक्रिय थे. अगले दिन आर्मस्ट्रॉन्ग बेहद गुपचुप तरीके से उन लोगों से मिलने गए. और उनका काम देखकर बहुत खुश हुए. चूंकि मेरे जाने पर उनकी इस यात्रा के ज़ाहिर हो जाने का ख़तरा था इसलिए मैं उनके साथ नहीं जा पाया. नील जयपुर भी देखना चाहते थे लेकिन समय कम था. वे उसी दिन दिल्ली के लिए निकल गए.
मैं उनसे एक बार और मिलना चाहता था. एक बार मैं न्यूयॉर्क गया था. लेकिन तब उनके पास कैलिफोर्निया जाने के लिए मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. अगली बार मैं ब्रैडमैन के साथ कैलिफोर्निया गया लेकिन तब आर्मस्ट्रॉन्ग वहां नहीं थे. तब मुझे लगा कि कम से कम उस स्पेसशिप को तो ज़रूर देखना चाहिए जिसमें बैठकर वे चांद पर गए थे. ब्रैडमैन मुझे वॉशिंगटन के उस संग्रहालय में ले गए जहां ‘अपोलो-11’ मौजूद था. उसके बाद भी मैंने नील आर्मस्ट्रॉन्ग से मिलने की कई बार कोशिश की. लेकिन यह ख्वाहिश अधूरी ही रह गई.
दिल्ली जाकर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से माफी मांगी थी!
इस बात का खुलासा पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने 2012 में आर्मस्ट्रॉन्ग के निधन के कुछ दिन बाद ब्रिटेन में किया था. तब सिंह ने मीडिया को जानकारी दी- जब आर्मस्ट्रॉन्ग और उनके दो अन्य साथी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनके संसद वाले दफ़्तर में मिलने पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि 20 जुलाई 1969 को गांधी सुबह साढ़े चार बजे तक जागती रहीं ताकि वे उन्हें (आर्मस्ट्रॉन्ग को) चांद पर कदम रखते हुए देख सकें. इस पर आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा था, ‘मैडम प्राइम मिनिस्टर, मैं इस बात के लिए माफी चाहता हूं कि आपको हमारी वजह से यह परेशानी उठानी पड़ी. अगली बार चांद पर जाते समय मैं इस बात का ख्याल रखूंगा कि हम वहां ऐसे समय उतरें जो पृथ्वी के हिसाब से ज्यादा विषम न हो.’
(हमसे यह किस्सा साझा करने वाले पूर्व सचिव श्री ओंकार सिंह का मार्च-2019 में निधन हो गया)
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